एक बच्चे के आगे जो झुक कर देखा।
पहली मर्तबा बड़े करीब से खुदा देखा।।
इक फ़कीर मैं उसकी झलक दिखाई दी।
डूब कर मस्ती में बन्दगी में रमा देखा।।
उसकी नेक जुबां में भी बसता रहा वर्षों।
कहीं किसी माँ की दुआ में मिला देखा।।
उसी का तेज़ लगी कभी पाश की नज्में।
शिव की हसीन गजलों में भी घुला देखा।।
कभी अन्द्रेटा में जिसका था सृंगार हुआ।
दारजी की उस गद्दण के रंग रंगा देखा।।
देखा जिसने भी दिल की नजर से उसे।
वही आंख में वही सांस में बसा देखा।।
पहली मर्तबा बड़े करीब से खुदा देखा।।
इक फ़कीर मैं उसकी झलक दिखाई दी।
डूब कर मस्ती में बन्दगी में रमा देखा।।
उसकी नेक जुबां में भी बसता रहा वर्षों।
कहीं किसी माँ की दुआ में मिला देखा।।
उसी का तेज़ लगी कभी पाश की नज्में।
शिव की हसीन गजलों में भी घुला देखा।।
कभी अन्द्रेटा में जिसका था सृंगार हुआ।
दारजी की उस गद्दण के रंग रंगा देखा।।
देखा जिसने भी दिल की नजर से उसे।
वही आंख में वही सांस में बसा देखा।।
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें